By : techchauraha
Thursday, 1:01 AM, Jul 29, 2021
Published in : Future Technology
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) खड़गपुर और भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (IISER) कोलकाता के शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक ऐसे मटेरियल को ढूंढ निकाला है जिससे टूटे हुए हिस्सों को फिर से आपस मे जोड़ा सकता है।
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नमस्कार दोस्तो ये है techchauraha ब्लॉग यहाँ हम तकनीकी जगत से जुड़ी जानकारिया हिन्दी भाषा share करते है , इसी क्रम मे आज हम बात करेंगे एक नयी तकनीक के बारे मे जिससे जिसकी मदद से मटेरियल physical damage को खुद ही heal कर लेगा । हाँ दोस्तो सही पढ़ रहे है आप , अब ऐसी ही तकनीक आने वाली है जिससे materials self heal हो जाएंगे । आपको बता दें की भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) खड़गपुर और भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (IISER) कोलकाता के शोधकर्ताओं की एक टीम ने हाल ही में एक विज्ञान पत्रिका साइंस जर्नल में एक नई “सेल्फ हीलिंग क्रिस्टलीन मटेरियल” (Self-Healing Crystalline Material) के बारे में जानकारी साझा की है जो कांच के मूल स्वरूप को वापस लाने के लिए टूटे हुए हिस्सों को फिर से इकट्ठा कर सकती है।शोधकर्ताओं के अनुसार उन्होने एक पारदर्शी, स्व-उपचार सामग्री (self healing material), जो की स्मार्टफोन स्क्रीन बनाने में उपयोगी हो सकती है, बनाई है। अगर आप ऐसी ही मजेदार technologies के बारे मे जानना चाहते है की self healing material क्या है ? self healing material in hindi, स्व-उपचार रोबोट या Self Healing Robots in hindi तो इस आर्टिकल मे हमारे साथ बने रहिए, तो चलिये शुरू करते है -
जानकारी के लिए आपको बता दे की सेल्फ हीलिंग क्रिस्टलीन मटेरियल पहली ऐसी तकनीक नहीं है जिस पर रिसर्च चल रही हो ,कुछ समय पहले अमेरिकन केमिकल सोसाइटी के शोधकर्ताओं ने ऐसे तैराकी रोबोट develop किए थे जो चुंबकीय रूप से खुद को ठीक कर सकते हैं। NUS, सिंगापुर की एक टीम ने एक स्मार्ट फोम मटेरियल बनाया था जो की रोबोट को वस्तुओं को समझने और स्वयं की मरम्मत करने मे मदद करता था।
जैसा की हमने आपको ऊपर बताया है की भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) खड़गपुर और भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (IISER) कोलकाता के शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक प्रकार का पीजोइलेक्ट्रिक मॉलिक्यूलर क्रिस्टल पाया है जो ऑटोनॉमस सेल्फ-हीलिंग में सक्षम है अर्थात यह टूट जाने पर फिर से वापस अपने पुराने स्वरूप मे आ जाता है । साइंस जर्नल में प्रकाशित अपने पेपर में, टीम ने पीजोइलेक्ट्रिक आणविक क्रिस्टल और उनके द्वारा विकसित किए गए क्रिस्टल के साथ अपने काम का वर्णन किया है जो खुद को ठीक कर सकते हैं।
हाल के वर्षों में स्व-उपचार सामग्री एक गहन शोध का उद्देश्य बन गई है। इस तरह के प्रयासों से कुछ अच्छे परिणाम भी मिले हैं उदाहरण के लिए : पॉलिमर, जैल और इसी तरह के कई दूसरे मटेरियल्स विकसित किए गए है, जो फ़िज़िकल डैमेज होने पर कुछ हद तक खुद को ठीक कर सकते हैं। ऐसी सफलताओं में आज तक एक बात समान है की वे सभी नरम (soft) हैं। इस नए शोध में, शोधकर्ताओं के लिए ये एक बड़ी मुसीबत थी की एक ऐसे मटेरियल को खोज निकालना जो ठोस और मजबूत भी हो और वह खुद को हील करने मे भी सक्षम हो अर्थात एक ढोस पदार्थ को कैसे खोजा जाए , जो नियमित रूप से व्यवस्थित अणुओं से बना हो, जब अलग हो जाए तो ठीक भी हो जाए।
जैसा कि एक पत्रिका एएएएस में प्रकाशित हुआ है- शोध में कहा गया है कि कैसे पीजोइलेक्ट्रिकिटी मानव शरीर में हड्डी और कोलेजन प्रोटीन जैसे यांत्रिक रूप से घायल प्राकृतिक बायोमैटिरियल्स में स्व-उपचार शुरू करती है। हमारे nature के इसी self healing से प्रभावित होकर इस शोध की शुरुआत की गयी । इसी तरह विशेष रूप से डिजाइन किए गए क्रिस्टल में आणविक व्यवस्था के कारण, दो सतहों के बीच एक मजबूत आकर्षक बल विकसित होता है। हर बार जब कोई फ्रैक्चर होता है, तो बल बिना किसी बाहरी एजेंट जैसे गर्मी के, टुकड़ों में फिर से जुड़ जाते हैं। आपको बता दें की किसी भी यांत्रिक प्रभाव को प्राप्त करने पर विद्युत आवेश उत्पन्न करने की पावर के कारण, टूटे हुए टुकड़े दरार के जंक्शन पर विद्युत आवेश उत्पन्न करते हैं जो क्षतिग्रस्त भागों के बीच आकर्षण पैदा करता है जो एक सटीक स्व मरम्मत का कारण बनता है।
टीम द्वारा किए गए शोध में पीजोइलेक्ट्रिक आणविक क्रिस्टल ( यह एक प्रकार का क्रिस्टल जो यांत्रिक ऊर्जा को बिजली में परिवर्तित करने में सक्षम है - उदाहरण के लिए : माइक्रोफोन में प्रयोग किया जाने वाला क्रिस्टल ) को observe किया । शोधकर्ताओं ने सोचा कि ऐसे क्रिस्टल में मौजूद गुणों को उनकी आकर्षक शक्तियों के कारण स्वयं को ठीक करने के लिए प्रयोग मे लेना चाहिए। काफी सारे परीक्षण और असफलताओं के बाद, शोधकर्ताओं ने बिपिराज़ोल कार्बनिक क्रिस्टल को खोज लिया। फिर बिपिराज़ोल कार्बनिक क्रिस्टल को उन्होंने छोटे (2 मिमी लंबे और 0.2 मिमी चौड़े) सुई के आकार में विकसित किया । इसके बाद, उन्होंने उन्हें तोड़ने के लिए अपने परीक्षण क्रिस्टल पर पर्याप्त दबाव डाला, और फिर देखा कि वे टूटने के बाद फिर से वापस दरार का गैप भर दिया और self heal हो गए और मजे की बात यह है की एक ध्रुवीकरण माइक्रोस्कोप प्रणाली के साथ क्रिस्टल के परीक्षण से पता चला कि सामग्री वास्तव में ठीक हो गई थी जिसमें टूटी हुई जगह पर दरार का कोई सबूत नहीं था।
आईआईएसईआर के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर चिल्ला मल्ला रेड्डी के अनुसार भारत मे विकसित किए गए सेल्फ हीलिंग मटेरियल ( Self-healing material developed by scientists of India ) दूसरे सेल्फ हिलिंग मटेरियल्स की तुलना में 10 गुना मजबूत है और इसमें एक सुव्यवस्थित आंतरिक क्रिस्टलीय संरचना है, जिसके कारण इसका उपयोग अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑप्टिकल में कर सकते है ।
इसका उपयोग निम्नलिखित क्षेत्रों मे किया जा सकता है -
अभी तो सेल्फ हीलिंग क्रिस्टलीन मटेरियल तकनीक शोध मे ही है पर अगर यह तकनीक बाज़ार मे आ जाती है तो इससे हम सबको काफी फायदा होगा जैसे अक्सर हमारे मोबाइल फोन की स्क्रीन गिर जाने पर टूट जाती है जिससे हमको उसे repaire करना पड़ता है । इस तकनीक से हम ऐसी ही कई समस्याओं से निजात पा जाएगे । बहरहाल यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि भारत में विकसित किए गए क्रिस्टल किसी भी उत्पाद में उपयोगी होंगे या नहीं । लेकिन उनके काम से यह तो पता चलता है कि पीजोइलेक्ट्रिक आणविक क्रिस्टल को उगाया जा सकता है जो स्व-उपचार मे सहायता करेंगे । उनका सुझाव है कि ऐसे क्रिस्टल ऑप्टिकल और नैनोप्रोबिंग उपकरणों में उपयोग कर सकते हैं। इस बात की भी थोड़ी संभावना है कि इस तरह की सामग्री को एक दिन वीडियो स्क्रीन में इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे स्मार्टफोन को गिराए जाने पर टूटने के बाद खुद को ठीक करने की सहूलियत मिलेगी ।
आशा करता हूँ की आप जान पाये होंगे की सेल्फ हीलिंग क्रिस्टलीन मटेरियल क्या है ?, सेल्फ हीलिंग क्रिस्टलीन मटेरियल कैसे काम करता है ? और आने वाले समय मे सेल्फ हीलिंग क्रिस्टलीन मटेरियल का उपयोग ? कहाँ - कहाँ किया जा सकता है । दोस्तो अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया हो तो इसे अपने social media पर अवश्य share करें और अपना सुझाव हमे कमेंट बॉक्स मे दें , धन्यवाद !
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